सारंग उपाध्याय
आर्थिक विषमता, बेकारी, बंद होती कंपनियों और मंदी के
घटाटोप अंधेरे के इस दौर में भारतीय क्रिकेट, पूंजी और समृद्धि का एक अद्भुत टिमटिमाता
तारा है. इस तारे की मद्धम और झीनी रोशनी से देसी अर्थव्यवस्था जगमग होती रही है,
तो दुनिया के कई कंगाल होते, तंगी झेल रहे क्रिकेट बोर्ड भी राहत की रोशनी पाते
रहे हैं. यह बताने की जरूरत नहीं कि रोजाना देश के आर्थिक महाशक्ति होने के अलापे
जाने वाले राग के बीच बीसीसीआई सालों से क्रिकेट की आर्थिक महाशक्ति है और हाल ही
में साउथ अफ्रीका बोर्ड का बीसीसीआई को बिना बताए भारत अफ्रीका मैचों की तारीख
फिक्स करने का नतीजा उसे क्रिकेट की दुनिया का किस तरह का अमेरिका घोषित करता है.
बहरहाल, अमीर क्रिकेट बोर्ड की दुनिया को लेकर इतनी बातें इसलिए कि इसमें रहने
वाले क्रिकेट की दुनिया के कुबेरपति सचिन अपने घरेलू मैदान मुंबई के वानखेडे पर आज
से अपना 200वां अंतिम टेस्ट मैच खेलने उतरेंगे. ऐसे में सवाल यह उठता है कि उनके
संन्यास के बाद पिछले डेढ से ज्यादा दशकों से भारत में कई बडी देसी विदेशी कंपनियों
के लिए मुनाफे का मोहजाल फैलाने वाले सचिन की लोकप्रियता का ग्राफ क्या कम होगा? क्या विज्ञापन की दुनिया के इस किमियागार पर
पहले की तरह कंपनियां मेहरबान होंगी? और क्या भारतीय खेलों की दुनिया के सबसे बडे
ब्रैंड स्वर्गीय रमेश तेंदुलकर के इस छोटे लडके की विज्ञापनी माया ढलने तो नहीं लगेगी? जब तक रन बनते रहे मुनाफे की बावली कंपनियां
सचिन के पैड, बैट, हैलमेट, जूते और शर्ट के खीसे तक को भुनाती रही, फिलहाल तो वे
खुद ही एक ब्रैंड बन चुके हैं जो बाजार से बडा है.
इस समय उनके पास 16 ब्रैंड के
कॉन्ट्रेक्ट हैं, हां धोनी और विराट कोहली पिछले कुछ सालों से उन्हें लगातार
चुनौती दे रहे हैं. इसमें भी कोहली की धमक ज्यादा है, इस रूप में कि सचिन के एडिडास के ब्रैंड एम्बेसडर रहते हुए
भी इस कंपनी ने कोहली से 10 करोड सालाना का नया गठबंधन किया है. ऐसे में बाजार
विशेषज्ञ लगातार इस सवाल को उठाते रहे हैं कि सचिन जल्द ही ब्रैंडिंग की दुनिया
में पिछड जाएंगे और उनकी लोकप्रियता हाशिये पर चली जाएगी.
खैर, बात सही भी है क्योंकि
कोहली के रूप में यह दिखाई दे रहा है और इस रूप में भी कि पूंजीवादी व्यवस्था
में मुनाफे की कोई निष्ठा और ईमान नहीं होता, वह अवसरवादी होती है. जाहिर है बात
सही हो सकती है, लेकिन कुछ सवालों के बीच, जो उठना लाजिमी है और बिल्कुल भी नये
नहीं है कि क्या सचिन की लोकप्रियता से बडी उनकी प्रतिष्ठा नहीं है और क्या
लोकप्रियता से ज्यादा उनकी प्रतिष्ठा ने उन्हें ब्रैंडिंग का सरताज नहीं बनाया.
कौन नहीं जानता कि फिक्सिंग, सट्टेबाजी और आईपीएल जैसे फॉर्मेट की चमकती रातों
में लगातार काले हो रहे क्रिकेट में सचिन आज भी चारित्रिक रूप से उतने ही धवल,
उजले और सम्मानित होकर हमारे सामने हैं, जितना कि कोई अंजान नया चेहरा.
सचिन के एक
बेहतरीन क्रिकेटर होने से बडी खासियत मैं यह मानता हूं कि पिछले 24 सालों के उनके
क्रिकेट कॅरियर में उनके चरित्र पर न तो कोई दाग लगा, न वे किसी सट्टेबाजी या फिक्सिंग
स्कैंडल में फंसे, यहां तक कि एक सिंगल फोटो भी ऐसी नहीं रही जो उनके नाम पर विवाद
पैदा करती. विनम्रता, निष्ठा, प्रतिष्ठा और चरित्र सचिन की वास्तविक ब्रैंडिंग
करते हैं. एक नजरिये से देखा जाए तो दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र की संसद के सर्वोच्च
सदन राज्यसभा में सदस्य के रूप में वे दुनिया के और भी बडे व प्रतिष्ठित ब्रैंड
बनकर सामने आए हैं, अब तो उन्हें खेलमंत्री बनाए जाने के सपने हवा में घुलने लगे
हैं. जाहिर है ऐसे में संभावना इस बात की भी है कि कंपनियां उनकी लोकप्रियता को
नहीं बल्कि अब उनकी प्रतिष्ठा पर पैसा लगाएं. सचिन से जुडने का उनका मकसद महज
उत्पाद की बिक्री बढाना नहीं बल्कि उत्पाद की क्वॉलिटी बनाना हो.
मुंबई में
कांदीवली जिम खाना क्लब उनके नाम से हो जाने की आहट उनकी कीर्ति की पवित्रता का
विस्तार है, जो देखना होगा कि कहां तक जाकर फैलती है? पवित्रता शब्द का
इस्तेमाल यहां इसलिए कि यह उनकी क्रिकेट प्रतिभा की उस महानता को दर्शाता है, जब
खेल का मतलब देशभक्ति था, राष्ट्र की सेवा था और हर प्रशंसक के मन में देश के
प्रति भावना और आत्मीयता का आलोक पैदा करता था. बहरहाल, अपने अंतिम टेस्ट के लिए
मुंबई के इस पोरगे को और देशभक्त को शुभकामनाएं, इस इच्छा के साथ की उनके
क्रिकेट से भी ज्यादा प्रभावशाली उनके व्यक्तित्व का विस्तार होगा और वह खेल
की दुनिया में अतुलनीय होगा.
बैस्ट लक ऑफ सचिन...!
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