रविवार, 19 अप्रैल 2009

किससे बोलूं , किससे कह दूं… ?

मन है चंचल जीवन उलझन,
एक नहीं, बाधा है पल पल
स्‍वर की सरगम बहक चुकी है

शोर हुआ हर, मन का संगम

किस से बोलूं, किससे कह दूं
नहीं चलना है अब जीवन पथ पर
एक नहीं जो जी जाउं यहां पर
असंख्‍य निकले, जीवन गमन पर

है अंधियारा पर भासे उजियारा
देख देख भ्रम है हारा
मष्‍तिष्‍क पटल पर स्‍मृति उलझी
धराशायी हुआ, हर ताना बाना

तुम तो निश्‍चल, निर्मल मन से
मेरे मन को जोड रही हो
हे प्रियतम ये विशाल बाधा
क्‍यो इस उलझे मन में भेज रही हो

मैं तो राही असमंजस का हूं
सत्‍य खोज, में निकल पडा हूं
जहां दिख पडा लौ का उजाला
उधर, सवेरा देख रहा हूं।

मेरे हृदय पटल पर तुम प्रियतम
बंधन पाश के बांध रही हो
न तो रहूंगा मैं किसी का
क्‍यों जीवन को बांध रही हो

निवेदन का मैं सूत्र भेजता
आंखों से क्षमा पूछता
हे प्रियतम, स्‍वतंत्र करो मन को
अब तो स्‍वच्‍छंद आकाश देखता

ये अतीत है छूट जाएगा
पर दुख थोडा दे जाएगा
हां ये कठिन रहेगा थोडा
लेकिन सब कुछ बीत जाएगा।

आओ निवेदन दिनकर करता
किरणों से आशिष भेजता
बंधन खोलो प्रियवर उर के
ये अंबर, राह देखता
स्‍वतंत्रता के, पाश खोलता
स्‍व से स्‍व को मुक्‍त देखता
स्‍व से स्‍व को मुक्‍त देखता.........

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