(मुंबई से हरदा जाने के दौरान ट्रेन से इतिहास में समा गए "हरसूद" को खोजते हुए, यह गांव सरदार सरोवर बांध में डूब गया था और हजारों लोग विस्थापित हो गए थे.अब यहां छनेरा नाम का नया स्टेशन है डूबे हुए हरसूद के नाम से फिर से बसाया गया है).
नीम काटकर, लोहा ठगकर
हाट लगाते, गांव लूटकर
हर टीला, हर झाडी नोची
सपने बेच रहे सौदागर
हाट लगाते, गांव लूटकर
हर टीला, हर झाडी नोची
सपने बेच रहे सौदागर
मौसम सूखा, ऋतुएं रूठीं
हर पगडंडी, चौपाल है सूनी
खेत पर किसकी छांव पडी है
उसके हिस्से की धूप बेचकर
सूनी गोद, बिलखती नदियां
जहर भरा है पेट काटकर
भटक रहे हैं घर से दर दर
एक नहीं "हरसूद" यहां पर
जाने किससे कितना लुटकर
वो लौटा है सपने लेकर
उसने खुदको भीड में पाया
भटक रहा है बच्चे लेकर
उजडी बस्ती, चमक दिखाकर
बांझ गौरई है, कोयल बेघर,
चिढा रही मुंह हर छप्पर को
उंची बिल्डिंग खेत में बनकर
रोया, खेला, संवरा मिट्टी में
खूब रोया वो घर को खोकर
खेत पर किसकी छांव पडी है
उसके हिस्से की धूप बेचकर
सूनी गोद, बिलखती नदियां
जहर भरा है पेट काटकर
भटक रहे हैं घर से दर दर
एक नहीं "हरसूद" यहां पर
जाने किससे कितना लुटकर
वो लौटा है सपने लेकर
उसने खुदको भीड में पाया
भटक रहा है बच्चे लेकर
उजडी बस्ती, चमक दिखाकर
बांझ गौरई है, कोयल बेघर,
चिढा रही मुंह हर छप्पर को
उंची बिल्डिंग खेत में बनकर
रोया, खेला, संवरा मिट्टी में
खूब रोया वो घर को खोकर
उजाड हुई है कई सौ पीढी
जहर बो दिया सपने लेकर
कितने उसको निकले लेकर
घने जंगल में बंदूकें देकर
छुटकी खो गई, पत्नी बह गई
बंजारा मरेगा बागी बनकर ....
छुटकी खो गई, पत्नी बह गई
बंजारा मरेगा बागी बनकर ....
6 टिप्पणियां:
दर्द होता है..अतीत की पीड़ा सताती है..किन्तु उन्नति के मार्ग पर या विकास पथ पर अतीत हमेशा बलि हुआ है..जो आपने देखा , सुना, भोगा वो हरसूद अब नहीं है..और अब जो आने वाली पीढी देखेगी, भोगेगी उसके लिए नया अतीत निर्माण होगा ..उनका अपना ..सबकुछ उनके मुताबिक़....
पीड़ा झलकती है..तो यह दर्शाती भी है कि बदलाव में भावनाए भी बही है... , सुन्दर ढंग से अतीत और वर्तमान की स्थिति व्यक्त करती है रचना ...
now harsood is in past but it will be always in future.
Generation will not forget their past.
आमंत्रित सादर करे, मित्रों चर्चा मंच |
करे निवेदन आपसे, समय दीजिये रंच ||
--
बुधवारीय चर्चा मंच |
छुटकी खो गई, पत्नी बह गई
बंजारा मरेगा बागी बनकर ....
सघन ....
अतीत की परछाई में डूब कर व्यथित मनो भावों को उकेरा है कविता में बहुत मर्म स्पर्शी रचना
आप ने आकर बुधवारीय चर्चा मंच की शोभा बधाई ।
आभार ।।
एक टिप्पणी भेजें