हरदा के पास कुकरावद गांव की एक सांझ. फोटो-शीतल
कई स्मृतियां एकदम ठंडी होती हैं. बेजान. जैसे विस्मृति के मुहाने पर पड़ा अंजान और सबसे अजनबी टुकड़ा. या फिर की कोई धुंधला दृश्य जिसे भुलाना भी भुला दिया गया हो. स्मृति के ये सबसे ठंडे टुकड़े मुझे उस समय सबसे ज्यादा याद आए जबकि मैं विस्मृति के सबसे सुखद समय में था. मैं उन चेहरों, बातों और मुलाकातों को कभी भूल नहीं पाया जिन्हें मैं कभी समझ नहीं पाया.
कुछ स्मृतियों का न होना दरअसल सबसे ज्यादा सबकुछ होता है. जैसे सबसे ज्यादा पहचानना अजनबी को होता है. चिह्नित वही होता है जो होता है. होना भर सच में "बहुत कुछ" होता है..
सबसे ज्यादा मायने रखता है. याद का सबसे आखिरी कोना क्योंकि भुलाया वही जाता है जो होता है.. जो "था" उसका होना भर बहुत कुछ होता है न रहने के बाद भी..!
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