हृदय में जो था जता दिया है।
बोझ मन से उतार दिया है
न तो प्रियवर कहने को अब कुछ
ऋण था जो भी उतार दिया है।
चुप है रजनी, छिपी है बदली
आंखों में अश्रु की झरनी
जो था रीता, वो है बीता
खुदको मैंने सम्भाल लिया है।
है स्पर्श मन के भीतर
वचनबद्ध हूं खुदको कहकर
कल नहीं होगा जो आज घटा है
सत्य कटू था पर पी लिया है
ऋण था जो भी उतार…..
तम के ये चुभ रहे पल हैं
कल के बीते हुए ये छल हैं
दिन बीते जो साथ में प्रियवर
शूल से हृदय को भेद रहे हैं
लेकिन भीतर विरह की ज्वाला
सब कुछ मैंने निभा लिया है
ऋण था जो भी उतार…..
बोझ मन से उतार दिया है
न तो प्रियवर कहने को अब कुछ
ऋण था जो भी उतार दिया है।
चुप है रजनी, छिपी है बदली
आंखों में अश्रु की झरनी
जो था रीता, वो है बीता
खुदको मैंने सम्भाल लिया है।
है स्पर्श मन के भीतर
वचनबद्ध हूं खुदको कहकर
कल नहीं होगा जो आज घटा है
सत्य कटू था पर पी लिया है
ऋण था जो भी उतार…..
तम के ये चुभ रहे पल हैं
कल के बीते हुए ये छल हैं
दिन बीते जो साथ में प्रियवर
शूल से हृदय को भेद रहे हैं
लेकिन भीतर विरह की ज्वाला
सब कुछ मैंने निभा लिया है
ऋण था जो भी उतार…..
9 टिप्पणियां:
hi sonu,
i likd the very first one..
gayatri
parulhmm... acchi kavita hai...tum romantic poetry acchi karte ho..
very good..
keep it up..
Dost
This seems to be one of your best writing ... where do you rate this... or there is much more pearls to come out... Narendra
aap ke lekhan ko mera salam !
....this is one of the best of your writings.
cheers!
रंगा है हर अल्फाज विरह के रंग
विरासत में मिला है लिखने का ढंग
लिखते रहो... मेरे यार... कुछ नया हर बार
हमको रहेगा हर पल अगली पोस्ट का इंतजार
सारे ऋण तो उतार दिए...लेकिन कैसे उतार पाएंगे ऋण मां-बाप का?
सारे ऋण तो उतार दिए कैसे उतारे कोई ऋण मां-बाप का
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